नई दिल्ली: अरावली पर्वतमाला को लेकर चल रहे विवाद के बीच राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने केंद्र सरकार और केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव पर गंभीर सवाल उठाए हैं। गहलोत का कहना है कि यह मामला किसी राजनीतिक दल का नहीं, बल्कि देश के पर्यावरण और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य से जुड़ा हुआ है।
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरावली से जुड़े आदेश पर लगाई गई रोक का स्वागत करते हुए कहा कि जनता की आवाज़ और जन आंदोलन ने यह साबित कर दिया कि लोकतंत्र में जनभागीदारी की शक्ति कितनी महत्वपूर्ण है।
“यह जन आंदोलन था, राजनीति नहीं”
अशोक गहलोत के अनुसार, अरावली को बचाने के लिए शुरू हुआ अभियान किसी राजनीतिक पार्टी द्वारा संचालित नहीं था। उन्होंने कहा कि छात्रों, युवाओं, पर्यावरण कार्यकर्ताओं और आम नागरिकों ने मिलकर इस मुद्दे को राष्ट्रीय बहस बना दिया।
“हमने केवल लोगों से अपनी डीपी बदलने की अपील की थी, लेकिन यह एक जन आंदोलन में बदल गया।” — अशोक गहलोत
खनन और पर्यावरण को लेकर चिंता
गहलोत ने कहा कि भले ही सरकार यह दावा कर रही हो कि सीमित क्षेत्र में ही खनन की अनुमति दी जाएगी, लेकिन व्यावहारिक रूप से इससे कानूनी और अवैध खनन दोनों को बढ़ावा मिल सकता है। उन्होंने चेतावनी दी कि अरावली का क्षरण उत्तर भारत की जलवायु के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।
- अरावली मरुस्थल को आगे बढ़ने से रोकने वाली प्राकृतिक दीवार है
- यह क्षेत्र भूजल संरक्षण और जैव विविधता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है
- अनियंत्रित खनन से दिल्ली और आसपास के इलाकों में प्रदूषण बढ़ सकता है
सरकार पर सीधे आरोप
पूर्व मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि पहले भी अरावली की परिभाषा को बदलने की कोशिशें की गई थीं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें खारिज कर दिया था। उनका कहना है कि यदि सरकार वास्तव में पर्यावरण संरक्षण को लेकर गंभीर है, तो उसे स्वतंत्र विशेषज्ञ समितियों की सलाह को प्राथमिकता देनी चाहिए।
गहलोत ने यह भी कहा कि अरावली का मुद्दा केवल वर्तमान का नहीं, बल्कि इसका प्रभाव आने वाले दशकों तक देश की जलवायु और जीवन-शैली पर पड़ेगा।
अरावली विवाद यह दिखाता है कि पर्यावरण से जुड़े फैसले अब केवल सरकारी फाइलों तक सीमित नहीं रह सकते। जन आंदोलन, न्यायिक हस्तक्षेप और सार्वजनिक दबाव भविष्य की नीति-निर्माण प्रक्रिया को दिशा देंगे।
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